मेहंदीपुर बालाजी महाराज (राजस्थान)
मेहंदीपुर बालाजी
Mehandipur Balaji
बालाजी मंदिर का इतिहास
जिस स्थान पर वर्तमान में मेहंदीपुर बालाजी मंदिर है शुरू में इस स्थान पर घना जंगल हुआ करता था। सभी ओर घनी झाड़ियाँ और इनके वन्य जीव ही मौजूद हुआ करते थे। यहाँ के निवासी श्री महंत जी महाराज के पूर्वजो को एक सपने के बाद उठकर चलने की प्रेरणा मिली। वे स्वयं भी नहीं जानते थे कि वे किस दिशा में और क्यों जा रहे है। इसके बाद उनको कुछ विचित्र घटना देखने को मिली। उन्हें हजारो दिए जले हुए दिखाई दिए और साथ में बहुत सारे हाथी-घोड़ो की भी आवाजे सुनने को मिली। ऐसा लग रहा था जैसे किसी बड़े राजा की सेना का दल चढ़ाई कर रहा हो। इस सेना दाल ने बालाजी महाराज की प्रतिमा की 3 प्रदक्षिणाएं करी और ये देखकर सेना के प्रधान ने आकर बालाजी को दंडवत नमस्कार किया। इसके बाद ये जिस मार्ग से आये थे उसी से वापिस भी हो गए।
महंत गोसाई ये सभी घटना देखते रहे और कुछ ना समझते हुए बस आश्चर्य में ही रहे। वे काफी डर भी गए थे और तुरंत अपने गाँव आ गए। अभी भी वे डर के कारण सो नहीं पा रहे थे। बहुत समय तक इसी घटना के बारे में सोचने के बाद उनको नींद आ गयी और फिर से उन्होंने सपने में 3 प्रतिमाओं को देखा। साथ ही उन्हें ये आदेश भी मिला – ‘उठो और मेरी सेवा का कार्यभार ग्रहण करो, मैं अपनी लीलाओं का विस्तार करूँगा।’ वे ये बाते सुन तो सके पर कौन कह रहा है उनको नहीं पता चल पाया। इस घटना के बाद गोसाई जी ने अपना अधिक ध्यान ना दिया और कुछ ही समय बितने पर स्वयं बालाजी हनुमानजी ने उनको दर्शन देकर अपने पूजन का आग्रह किया।
इसके अगले ही दिन गोसाई जी इस प्रतिमा के पास चले गए और उन्हें वहां पर घण्टे-गाड़ियालो-नगाड़ो की आवाजे सुनाई दी। अभी वे कुछ देखने में असर्थ थे। अब गोसाई जी ने गाँव के लोगो को इकट्ठा किया और उन सभी को शुरू से लेकर अभी तक की कहानी का वर्णन कर दिया। अब लोगो के साथ मिलकर गौसाई जी ने बालाजी महाराज की एक छोटी सी तिवारी भी बनवा दी और विधि अनुसार भगवान जी की पूजा अर्चना भी शुरू कर दी।
मुस्लिम राजाओं का मंदिर
पर आक्रमण
जब देश में मुस्लिम राजाओं का काफी दमन काल चल रहा था तो उन्होंने भी इस प्रतिमा और मंदिर को काफी नुकसान पहुँचाने का प्रयास किया। किन्तु वे अपने सभी कुचेष्टाओं में पूरी तरह से विफल ही रहे। वे लोग इस प्रतिमा को जितनी मात्रा में खुदवाते थे प्रतिमा की जड़ें उतनी ही गहरी होने लगती थी। इसे सभी असफल कोशिशे कर लेने के बाद उन्होंने हार मान ली।
मंदिर के हनुमानजी की महिमा
पुराने शास्त्रों में भगवान हनुमानजी के लिए 7 करोड़ मन्त्रों में पूजन का वर्णन मिलता है। हनुमानजी पुरे भारत में पूजे जाने वाले देवता में से एक है चूँकि ये अपने भक्तों के कष्ट हरने एवं उन्नति का कार्य करते है। हुनुमानजी को बहुत से महान आत्माओं का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है इस प्रकार से उनमे 5 देवताओं का तेज़ विधमान है। अपने शौर्य एवं पराक्रमी बल के कारण उनके ‘बालाजी’ की उपाधि मिली हुई है। इस नाम से प्रसिद्ध मंदिरों में पुरे भारत देश में भक्तो का जनसैलाब देखने को मिलता है। इसी प्रकार का एक प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के दौसा जिले के मेहंदीपुर में भी मौजूद है। ये मंदिर एक हजार वर्ष प्राचीन बताया जाता है और इसमें स्थित हनुमान जी की प्रतिमा को स्वतः निर्मित कहते है।
ये मंदिर उत्तर भारत में काफी मान्यता रखता है और इसके प्रथम महंत श्री गणेशपुरी महाराज थे। यहाँ के पुजारी हमेशा सात्विकता एवं शाकाहार का पालन करते हुए धार्मिक शास्त्र पढ़कर बालाजी की सेवा में संलग्न रहते है। यहाँ की पहाड़ी के पिछले भाग में मौजूद हनुमानजी की प्रतिमा दीवार की तरह से स्थित है। इसी प्रतिमा को प्रधानता देते हुए समूचे मंदिर का निर्माण कार्य भी हुआ है। बालाजी की प्रतिमा की छाती के बाई ओर एक बहुत ही सूक्ष्म छेद भी है जिससे निरंतर जल की धार प्रवाहित होती रहती है। इस प्रकार से ये जल की धार उनके पैरों से होकर एक कुंड में इकट्ठा हो रही है। शुरू ही बालाजी के भक्त इस जल को उनका प्रसाद मानकर अपने साथ लेकर जाते रहे है। इस जन को बालाजी का ‘चरणामृत’ भी कहते है।
बालाजी के चोले का चमत्कार
साल 1910 में अंग्रेजी युग में बालाजी ने अपना सैकड़ो सालो पुराना चौला भी अपनी इच्छा से त्याग दिया। यह देखकर बालाजी के भक्तो ने चोले को ले जाकर पास के मंडावर रेल स्टेशन में ही गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। उस समय स्टेशन में मौजूद अंग्रेजी मास्टर ने चोले को ले जाने के लिए शुल्क की माँग की। वो इसको एक लगेज की तरह करने की बात कहने लगा। जब मास्टर ने चोले को लगेज करना शुरू किया तो वह कभी बड़ा होता और कभी छोटा होता। इस प्रकार से विभुचन में पड़े मास्टर ने अंत में चोले को बिना लगेज किये ले जाने की अनुमति प्रदान कर दी। इसके बाद बालाजी की प्रतिमा पर नया चोला चढ़ा दिया गया।
बालाजी
मंदिर से जुड़े नियम
- मंदिर में दर्शन करने से पहले 11 दिनों तक ब्रह्चर्य एवं सात्विकता के नियमो का धारण करना है। इस दौरान प्याज एवं लहसुन और मॉस-मदिरा का सेवन पूरी तरह से बंद करना है।
- मंदिर में आते समय अपने साथ किसी प्रकार से खाने अथवा पीने के समान को नहीं लाना चाहिए।
- इस क्षेत्र में पहुंचकर किसी भी व्यक्ति के साथ बातचीत नहीं करनी चाहिए और नहीं किसी को छूना अथवा छूने देना चाहिए।
- मंदिर की अरदास का प्रसाद नाही खाना है और नाही किसी अन्य को खिलाना है। ये प्रसाद अपने घर भी नहीं लेकर जाना है इस प्रकार से बुरी शक्ति आपके घर में वापिस आ
जाएगी।
- मंदिर में दर्शन कर लेने के बाद यहाँ से किसी भी प्रकार के सामान को घर नही ले जाना है और खाने के समान को रास्ते में ही फेक कर खाली हाथ घर पहुँचना चाहिए।
- मंदिर में आरती करते समय कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखना है अन्यथा आपके साथ बुरी शक्ति जुड़ जाएगी।
- बालाजी के दर्शन लेने के बाद पुरे 41 दिनों तक सात्विकता बनाये रखनी है जैसे अण्डा-मॉस, लहसुन-प्याज एवं शराब से दूर रहना है।
- इस प्रकार से 41 दिन का समय पूर्ण होने के बाद किसी ब्राह्मण से हवन करवाने के बाद ही पूजा संपन्न होती है।
मेहंदीपुर बालाजी के स्थित होने का स्थान और अन्य जगहों से मंदिर की दुरी
यह मंदिर करौली जिले के टोडाभीम में स्थित है, यह भारत के राज्य राजस्थान के शहर हिन्दौन के एकदम नजदीक है. यह मंदिर एक और कारण से भी चर्चित है जो ये है कि यह मंदिर दो जिलों के बीच में है. इस मंदिर का आधा भाग करौली और आधा भाग दौसा में है, इसके सामने ही एक राम मंदिर है, जोकि मुख्य मंदिर है. वह भी इसी तरह दो भागों में बंटा हुआ है. दुष्ट आत्माओं के संकट से बचने के लिए जो पीड़ित व्यक्ति है, वह प्रसाद के रूप में अर्जी, स्वामिनी, दरखास्त, बूंदी के लड्डू इत्यादि को बालाजी महाराज के ऊपर चढ़ाकर ग्रहण करते है और जो बुरी आत्मा है, उसको शांत करने के लिए उसके सरदार भैरव बाबा को चावल और उड़द दाल चढाते है.
यह मंदिर राजस्थान की राजधानी जयपुर से 66 किलो मीटर की दुरी पर है. इसके साथ ही अगर जयपुर और आगरा नेशनल हाई वे नंबर 11 से जाया जाए तो बालाजी मोड़ से मंदिर की दुरी 3 किलो मीटर तक की होगी. यह 3 किलो मीटर आप साझे में टुक टुक से 10 रूपये में पहूँच सकते है. अगर जयपुर से बालाजी मोड़ तक बस से जाए तो भाडा 110 रूपए तक लगता है. बाला जी मंदिर की दुरी हिन्दौन शहर के रेलवे स्टेशन से 44 किलो मीटर और दौसा से 38 किलो मीटर है. साथ ही यह बंदिकुइ रेलवे स्टेशन से बहुत ही ज्यादा नजदीक है. बांदीकुई रेलवे स्टेशन से मेहंदीपुर बाला जी मंदिर के बीच की दुरी 36 किलो मीटर है.
यह धार्मिक स्थल दिल्ली से 255 किलोमीटर, आगरा से 140 किलोमीटर, रेवारी से 177 किलोमीटर, मीरुत से 310 किलोमीटर, अलवर से 80 किलोमीटर, श्री महावीरजी से 51 किलोमीटर, भरतपुर से 40 किलोमीटर, गंगापुर शहर से 66 किलोमीटर, बंदिकुल से 32 किलोमीटर, महवा से 17 किलोमीटर, चंडीगढ़ से 520 किलोमीटर, हरिद्वार से 455 किलोमीटर, देहरादून से 488 किलोमीटर, देओबंद से 395 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है.मेहंदीपुर बालाजी मंदिर के आस पास के दर्शनीय स्थल (Mehandipur balaji temple nearest tourist place)
इस मंदिर के नजदीक और भी मंदिर है, जिनके भी लोग दर्शन करते है और पूजते है. इनके नजदीक है अंजनी माता मंदिर, काली माता जी की मंदिर जोकि तीन पहाड़ पर स्थित है. पंचमुखी हनुमान जी का मंदिर और गणेश जी का मंदिर जोकि सात पहाड़ पर स्थित है. मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में एक और महत्वपूर्ण स्थान है जिसका लोग दर्शन ज़रूर करते है वह है समाधि वाले बाबा. यह मंदिर के सबसे पहले महंत थे. उनकी समाधी वही पर बनी हुई है.
यह मंदिर पहाड़ों के बीच स्थित है. कई वर्षों से इस मंदिर को लोग बुरी आत्माओं को भगाने और काला जादू से बचाने में सहायक के रूप में जानते है. 2013 में अंतराष्ट्रीय वैज्ञानिक, जर्मनी और नीदरलैंड के विद्वान् और मनोचिकित्सक, एम्स दिल्ली और दिल्ली यूनिवर्सिटी ने भी मंदिर के इन सभी पहलुओं की जाँच और मूल्यांकन अध्ययन करना शुरू कर दिया है.
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर के आस पास का दृश्य
मंदिर में प्रवेश करते ही सब पहले लड्डू या जो भी प्रसाद वो लाये थे उसे चढाते है. फिर अचानक से वहाँ के दृश्य में बदलाव आ जाता है. लोग जोर जोर से चिल्लाने लगते है, और तेजी के साथ जोर से हनुमान चालीसा का पाठ शुरू होने लगता है, कोई जोर से जय सियाराम के नारे लगा रहा है, कुछ लोग चिल्ला रहे है जोर जोर से अपने सिर को घुमा रहे है, सभी गाना गा रहे है, दिवार पर सिर को मार रहे है, ये सारे दृश्य बड़े ही भयावह दिखाई देते हैं.
- यह मंदिर किसी भी व्यक्ति को डर का अनुभव दे सकता है। लम्बी दूरी से यात्रा करके आने वाले लोगों को यहाँ के तेज़ गर्म वातावरण के बावजूद मंदिर प्रांगण में अपनी पीठ पर ठण्ड का अनुभव होता है। हालाँकि राजस्थान राज्य अपने यहाँ की भीषण गर्मी के लिए जाना जाता है।
- मंदिर में प्रवेश के बाद ही भक्तो को घंटो की आवाजे सुनने को मिलती है और साथ ही महिला एवं पुरुषो के चीखने की भी आवाजे सुनने को मिलती है। इन पीड़ित लोगो के चीखने की आवाजे किसी भी व्यक्ति को भयभीत कर सकती है।
- यहाँ पर एक काले रंग की गेंद को दिया जाता है और इसे लेने से मना करना अशुभ माना जाता है। ये काली गेंद आपने पास रखने के लिए नहीं बल्कि आग में डाल देने के लिए होती है। मंदिर परिसर के दुकानदारों इस मिलने वाली गेंद को अपने शरीर के चारो ओर घुमाकर आग में फैंकना है।
- यदि आप मंदिर में कोई मन्नत मानते है तो इसके पूरी होने के बाद आपको ‘सवामणी’ का भोग देना होता है। इस सवामणी के भोग की रस्म को हर मंगलवार एवं शनिवार को करवाया जाता है।
- यह मंदिर किसी भी व्यक्ति को डर का अनुभव दे सकता है। लम्बी दूरी से यात्रा करके आने वाले लोगों को यहाँ के तेज़ गर्म वातावरण के बावजूद मंदिर प्रांगण में अपनी पीठ पर ठण्ड का अनुभव होता है। हालाँकि राजस्थान राज्य अपने यहाँ की भीषण गर्मी के लिए जाना जाता है।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में वर्जित कार्य
मंदिर के पास भूल कर इन कामों को नहीं करना चाहिए, ये काम वहाँ पर सख्त रूप से वर्जित है. जो कि निम्न प्रकार से है-
1. कभी भी जब आप मंदिर से बाहर निकले तो पीछे मंदिर की तरफ मुड़ कर नहीं देखना चाहिए.
2. मंदिर के आस पास किसी से बात नहीं करनी चाहिए और न ही किसी को छूने की कोशिश करनी चाहिए.
3. अगर आप अपने घर जा रहे है, तो न हीं वहा के प्रसाद और न ही वहा का कोई भी खाने वाला सामान कुछ भी नहीं ले जा सकते है. ये वहा पर वर्जित है.
4. अगर आप गावं से निकल रहे है तो सारे खान के पैकेट पानी के बोतल इत्यादि को वही पर छोड़ कर बाहर जाए.
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